Sponsor

recent posts

Friday, 13 March 2020

जब काफा की लड़ाई में सैनिकों की लाशें बनी केमिकल बम, सिल्क रूट से पहुंचा मौत का बैक्टीरिया

नई दिल्ली मंगोलिया का एसीकुआ कस्बा। साल 1337। कटलक सिल्क रूट के सहारे अपना माल बेचक घर लौटा था। अचानक बीमार पड़ा। उसकी पत्नी ने देखा कुछ दिनों बाद कटलक के शरीर पर कई फोड़े निकल आए हैं। ये हरे रंग के थे। 10 दिनों के भीतर ही कटलक चल बसा। इसके कुछ ही दिनों बाद उसकी पत्नी की भी इसी तरह मौत हो गई। यह दुनिया में ब्यूबोनिक की शुरुआत भर थी। उस साल मंगोलिया में चार लोगों की मौत हुई। एक साल बाद 200 लोग मारे गए। और उसके बाद इटली के कारोबारियों ने प्लेग के बैक्टीरिया को पूरी दुनिया में फैला दिया। देखते ही देखते यूरोप की एक तिहाई आबादी काल के गाल में समा गई। इमर्जिंग इनफेक्शियस डिजीज के नाम से नवंबर 2002 में प्रकाशित जर्नल के मुताबिक पांच करोड़ लोगों को प्लेग ने अपना शिकार बनाया। हालांकि महामारी की वीभत्स तस्वीर का उल्लेख कई ऐतिहासिक किताबों में है। पता चला कि ब्यूबोनिक प्लेग यर्सीनिया पिस्टा नाम के बैक्टीरिया से फैला था। ये पिस्सुओं के काटने से होता है और चूहे इसके वाहक हैं। चूहे की जोड़ी साल में दो हजार चूहे पैदा करती है। एक चूहा प्लेग फैलाने वाले आठ पिस्सुओं को साथ रखता है। एशिया के रास्ते ये चूहे रोम पहुंच गए। समुद्री कारोबार में जहाजों के रास्ते ये यूरोप पहुंचा। उस समय ब्लैक सी यानी काला सागर का बंदरगाह काफा सेंट्रल एशिया से यूरोप का द्वार माना जाता था। यहां पर इतालवी कारोबारियों की तूती बोलती थी। उसी समय चंगेच खान का वंशज जानी बेग मंगोलियाई साम्राज्य को फैलाने के इरादे से काफा पहुंचा। प्लेग ने जानी बेग की सेना को पस्त कर दिया। उसके हजारों सैनिक इसके शिकार हो गए। इसके बाज जानी बेग ने जो किया उसकी कल्पना कर आज के सैन्य इतिहासकार भी थर्रा जाते हैं। जानी बेग ने अपने ही सैनिकों की लाशों को हथियार बना डाला। उसने गुलेल की तरह के विशालकाय लॉन्चर बनाए। उसके जरिए काफा की दीवार के दूसरी ओर उसे प्लेग से मरे सैनिकों को फेंकना शुरू किया। मिलिट्री हिस्ट्री में इसे पहला जैविक युद्ध कहा जाता है। देखते ही देखते पूरा काफा लाशों से पट गया। लाशों के कारण प्लेग का बैक्टीरिया तेजी से फैलने लगा। जानी बेग ने सत्ता हथियाने के लिए अपने ही भाई की हत्या की थी। इटालियन गैब्रिएल द मुस्सी ने काफा में मौत का मंजर देखा था। उसके नोट्स को काफा की कहानी का इकलौता जीता जागता प्रमाण माना जाता है। जब असहाय हो गई मानव प्रजाति सैन्य इतिहासकार माइक लोडस ने अपनी किताब War Bows में लिखा है कि जैविक युद्ध का ये पहला भयानक उदाहरण था। इससे पहले ईसा पूर्व छठी सदी में सीरिया और ग्रीक लड़ाकों ने जहर का प्रयोग किया था। लेकिन काफा में लाशों के केमिकल बम की तरह इस्तेमाल किया गया। 165 देशों में तेजी से प्लेग फैल गया। ये ब्लैक डेथ की शुरुआत थी। पूरी दुनिया असहाय महसूस कर रही थी। काफा के लोग यूरोप भागने लगे। उन्हें पता नहीं था कि वे अपने साथ जानलेवा बीमारी लेकर जा रहे हैं। 1348 में इटली के एक पिता ने जो लिखा वो आज भी दर्ज है। उसने लिखा चारों ओर बीमारों का हुजूम है। लोग गिर रहे हैं। सड़कों पर मर रहे हैं। तब तक किसी को पता नहीं था कि ये चूहों के जरिए फैल रहा है। फिर बैक्टीरिया के अलावा ये हवा से भी फैलने लगा। इटली के सिएना शहर के 48 हजार लोग तो महीने भर में मारे गए। फ्रांस में पोप क्लीमेंट-6 का शहर दूसरा शिकार बना। वहां एक ही दिन में 14 हजार लोगों की मौत हो गई। पोप ने मृतकों को रॉन नदी में बहा दिया। 1349 में पूरा यूरोप प्लेग की गिरफ्त में था। मानव प्रजाति खतरे में थी। दंगे शुरू हो गए। अफवाहों का बाजार गर्म हो गया। बहुत सारे लोग इसे दैवी विपदा बताने लगे। अभी तक जर्मनी इस बीमारी से अछूता था। स्ट्रासबर्ग में अफवाह फैलने लगा कि यहूदी जहर फैला रहे हैं। ये अल्पसंख्यक थे। उन्मादी दंगाइयों ने यहूदी परिवारों को मारना शुरू कर दिया। 14 फरवरी, 1349 सेंट वैलेंटाइन डे मैसेकर के तौर पर इतिहास में दर्ज हो गया। एक हजार यहूदियों को जिंदा जला दिया गया। छह माह बाद प्लेग यहां भी पहुंच गया। 16 हजार लोग और मारे गए। एटलांटिक सागर ने इस बीमारी को अमेरिका नहीं पहुंचने दिया। उसी समय पता चला कि प्लेग जैसी बीमारी से निपटने का प्रभावी तरीका है आइसोलेशन यानी अलग-थलग रहना। हालांकि अमेरिका भी प्लेग के दूसरे अटैक से नहीं बच सका। 1894 में चीन के यूनान प्रांत से इसकी शुरुआत हुई। 1900 तक 80 हजार लोग फिर मारे गए। इस बार चीन से चलकर यह अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को पहुंचा। वहां चाइना टाउन में हजारों लोग मारे गए। तब के अमेरिकी राष्ट्रपति चेस्टर ऑर्थर ने चाइनीज एक्सक्लूजन एक्ट पास किया। इसके तहत चीन से लोगों के आने जाने पर बैन लगा दिया गया। ब्यूबोनिक प्लेग के बाद अब तक के 700 साल में दुनिया काफी तरक्की कर चुकी है। इस बीच न जाने कितनी बार सार्स, ई-बोला, चिकन पॉक्स जैसी संक्रामक बीमारियों ने खौफ फैलाया लेकिन जल्दी ही इनसे निपट लिया गया। पर ( )के फैलने की गति ने लोगों को चिंता में जरूर डाल दिया है। 70 से ज्याद देशों में ये फैल चुका है। 4500 लोगों की मौत हुई है। जानलेवा नहीं होने के बावजूद वही पुराना खौफ है और अफवाहों का बाजार भी गर्म है। सबसे कारगर इलाज भी वही है जिसने 700 साल पहले अमेरिका को बचाया था। संक्रमित लोगों से अलग रहें।


from India News: इंडिया न्यूज़, India News in Hindi, भारत समाचार, Bharat Samachar, Bharat News in Hindi https://ift.tt/33cLdZb

No comments:

Post a Comment

Comments system

[blogger][disqus][facebook]

Disqus Shortname

designcart

Revenue generate1

Powered by Blogger.